RBI repo rate

मई 2022 से रिजर्व बैंक लगातार नौ बार repo rate बढ़ा चुका है। लेकिन इस बार RBI repo rate में बढ़ोतरी नहीं बड़ाई गई है। यह दर फरवरी 2023 के बाद से अब तक स्थिर रखी गई है। 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक हुई जिसके परिणामस्वरूप परिणामों को सार्वजनिक किया गया। 8 अगस्त को शुरू हुई छह सदस्यीय एमपीसी बैठक के दौरान चुने गए विकल्पों की जानकारी देते हुए गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि नीतिगत दर या repo rate को इस बार भी वही पुरानी दरों को बरकरार रखा गया है। यथार्थ repo rate 6.5 फीसदी पर रहेगा और होम लोन या वाहन लोन लेने वालों को ईएमआई में अधिक भुगतान नहीं करना होगा।

RBI repo rate में कोई समायोजन नहीं होगा, यह कहते हुए आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि भारत तेज़ गति से अपना और अपने साथ कई अन्य देशो को भी विकास में मदद कर रहा है और जल्द ही दुनिया का आर्थिक इंजन बन जाएगा। उनके अनुसार, हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसके अतिरिक्त हमारी अर्थव्यवस्थाएं तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति भारत को उन परिवर्तनों से लाभ उठाने के लिए सर्वोत्तम स्थिति में रखती है जिसमे विश्वव्यापी विकास का लगभग 15% भारतीय अर्थव्यवस्था को दिया जाता है।

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फरवरी के बाद से रेपो रेट में बदलाव 

देश में मुद्रास्फीति के उच्च स्तर को कम करने और इसे तय किया गए दायरे में वापस लाने के लिए रिजर्व बैंक ने मई 2022 से लगातार नौ बार रेपो रेट बढ़ाई। इस दौरान यह रेपो रेट, इस अवधि में 250 बेसिक अंकों के साथ बड़ाई गई। हालांकि केंद्रीय बैंक ने महंगाई पर नियंत्रण के चलते फरवरी 2023 से इस पर अंकुश लगा दिया है जिस वजह से यह दर २०२३ से अभी तक नहीं बड़ाई गई। इसके अतिरिक्त, विशेषज्ञों को उम्मीद थी कि RBI एक स्थिर repo rate बनाए रख सकता है। इससे पहले अप्रैल और जून में हुई बैठकों में भी इस दर को इसी स्तर पर बरकरार रखा गया था। 

RBI bank ने repo rate को मौजूदा स्तर पर बनाए रखने का फैसला किया है, इसलिए आरबीआई ने एमएसएफ बैंक दर को 6.75 प्रतिशत और एसडीएफ दर को 6.25 प्रतिशत पर बनाए रखने का फैसला लिया। आरबीआई के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024 में जीडीपी ग्रोथ 6.5 फीसदी और अगले साल 2025 की अप्रैल-जून तिमाही में 6.6 फीसदी रहेगी। शक्तिकांत दास के मुताबिक, वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में वास्तविक जीडीपी ग्रोथ 8 फीसदी रह सकती है।

Repo rate बढ़ने से लोन की ईएमआई बढ़ जाती है

रिवर्स रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को पैसा रखने के लिए ब्याज देता है जबकि रेपो रेट वह दर है जिस पर आरबीआई बैंकों को ऋण देता है। जब रेपो रेट के घटने से ऋण की ईएमआई भी घट जाती है; इसके विपरीत, जब रेपो रेट बढ़ता है तो ईएमआई भी बढ़ जाती है। देश के लिए आरबीआई द्वारा निर्धारित की  गई दायरे के बाहर जब महंगाई जाती है तो फिर इस महंगाई को काम करने के लिए रेपो रेट बढ़ाने का निर्णय लिया जाता है।

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महंगाई और रेपो रेट में कनेक्शन

RBI यानी की भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई दर पर काबू पाने के लिए रेपो रेट बढ़ाता है, जिस वजह से ऋण अधिक महंगे हो जाते हैं। लोन के महंगे  होने की वजह से देश के लिया एक समस्या उत्पन्न होती है जो देश की इकॉनमी में कॅश फ्लो में गिरावट का करना बनती है, परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह घट जाता है। रिज़र्व बैंक अन्य बैंकों को “रिवर्स रेपो दर” नामक दर पर जमा पर ब्याज देता है। जून में यही खुदरा महंगाई दर 4.8 फीसदी थी।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल के माध्यम से हमने जाना कि  RBI repo rate में किस तरह से विश्लेषण किया गया है, कि RBI, रेपो रेट में किस तरह से बढ़ोतरी करता है और किस वजह से RBI यह दर सुनिश्चित करता है। इस दर के बढ़ने के कारण लोन क्यों महंगे हो जाते है और इस दर के बढ़ने से लोगो के जीवन में किस तरह से प्रभाव पड़ता है।

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