हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है, यह एक ऐसा सवाल हैं, जो कभी न कभी हर व्यक्ति के मन में आते हैं। वैसे, जीवन के उद्देश्य को लेकर शिक्षाविदों की अलग-अलग राय रही है। पर, एक बात जो सभी ने समान रूप से स्वीकारी है, वह यह कि हमारे जीवन का उद्देश्य एक-दूसरे से प्रेम करना है। प्रेम ही वह अदृश्य बंधन है, जो इन्सान को इन्सान से बांधे रखता है। इसीलिए बहुत से रिश्ते खून के न होते हुए भी बेहद घनिष्ठ हो जाते हैं। हमारे उन रिश्तों में प्रेम का भाव सर्वोपरि होता है। पर, ऐसा जरूरी नहीं कि हम हमेशा अपने जीने के उद्देश्य का अर्थ ही तलाशते रहें। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें अपने जीवन के उद्देश्य से कोई सरोकार ही नहीं होता। वह सिर्फ एक मंतव्यहीन और गंतव्यविहीन जीवन जीते रहते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि वे कभी पूरी तरह सुखी और संतुष्ट नहीं हो पाते। इसलिए अपने जीवन के उद्देश्य को समझना और पहचानना सभी के लिए नितांत आवश्यक है।
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ढूंढ़ें अपने जीवन का मकसद, और स्वावलंबी बनें
आपको यह जानकर बड़ी हैरानी होगी कि ईश्वर सदैव हमें ऐसे संकेत देता है, जो हमें जीवन का उद्देश्य जानने में सहायक होती हैं। बस आपको सही समय पर उन संकेतों को पहचानना आना चाहिए। वैसे, यह कोई जटिल कार्य नहीं है। जीवन में आया कोई बड़ा बदलाव, किसी नए सम्बंध का जुड़ना या किसी पुराने रिश्ते का खत्म होना, कुछ ऐसे इशारे भी हमे मिलते हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि कहीं हम बिना किसी लक्ष्य के उद्देश्यहीन ज़िन्दगी तो नहीं जी रहे हैं।
प्रेम-भाव है सर्वोपरि
प्रेम एक ऐसा भाव है, जो किसी भी विपत्ति का सामना करने का साहस देता है। इसीलिए जंगल में शेर को सामने देखकर भी हिरणी अपने शावक को अकेला छोड़कर नहीं भागती। ठीक ऐसा ही इन्सान के साथ भी होता है। अपने प्रियजनों को कष्ट में देखकर हम हर हाल में उनकी सहायता का प्रयास करते हैं और ऐसा करने में अपनी क्षमताओं के पार जाने में भी गुरेज नहीं करते। पर, यह भाव सिर्फ अपने प्रियजनों तक ही सीमित क्यों रहे? यदि प्रेम अपने आप में इतना शक्तिशाली है तो हमें हर इन्सान के साथ प्रेम भाव से ही मिलना चाहिए। यदि देखा जाए तो हम में से हर व्यक्ति अगर इस नियम का पालन करने लगे, तो सभी को अपने-अपने जीवन का लक्ष्य स्वंय ही मिल जाएगा।
जटिल नहीं है हमारा जीवन
हम अकसर सुनते हैं कि जिंदगी आसान नहीं है या संघर्षों का नाम ही जीवन है। पर, यह बात पूरी तरह सच नहीं है। जब एक बच्चा पैदा होता है, तो उसका हृदय डर, द्वेष, जलन, चिंता और कड़वाहट जैसे भावों से बिलकुल मुक्त होता है। इसीलिए छोटे बच्चों को अबोध और साफ दिल का कहा जाता है। पर जैसे-जैसे हम बड़े होने लगते हैं, अलग-अलग प्रकार की जिम्मेदारियां, लोगों से हमारे रिश्ते और प्रतिस्पर्धा की भावना हमारे अंदर असुरक्षा और तनाव बढ़ाने लगते हैं। फिर, हम सोचने लगते हैं कि जीवन सरल नहीं है। लेकिन विस्तृत परिपेक्ष में यदि देखा जाए तो यह स्थितियां या भाव हमने खुद अपने अंदर पैदा किए हैं और खुद हमने अपने जीवन को जटिल बनाया है। अब यदि ऐसा सोचा जाए कि हम सभी समान रूप से आपस में एक-दूसरे से जुड़े हैं, तो जिंदगी आसान हो जाएगी।
दरअसल ईर्ष्या, जलन या असुरक्षा की भावना कुछ खो देने के डर से आती है। पर, जब हम इस डर पर काबू पा लेते हैं तो आगे का रास्ता अपने आप साफ दिखाई देने लगता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि बिछोह या त्याग का डर सिर्फ हमारे दिमाग की उपज है, वास्तव में तो हम सब के तार एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि कभी-कभी किसी से बेहद नाराज होने के बावजूद, हम मन ही मन यह अपेक्षा रखते हैं कि शायद वह आगे बढ़कर हमसे बात कर लेगा। हमसे माफी मांग लेगा। या कभी-कभी ऐसा भी सोचते हैं कि बातचीत की पहल क्या कर लेनी चाहिए। या आगे जरूर सब कुछ ठीक हो जाएगा। फिर हम सोचने लगते हैं कि जीवन बहुत कठिन है। कुल मिलाकर, हम अपनी सोच की दिशा बदल कर अपने जीवन को बहुत ही आसान बना सकते हैं। हो सकता है कि प्रारंभ में कुछ कठिनाई महसूस हो, पर धीरे-धीरे अभ्यास के साथ जीवन के लक्ष्य को निश्चित रूप से हासिल किया जा सकता है।
जब हम एक नियमित ढर्रे पर अपना जीवन जीने लगते हैं, तो अचानक हुए किसी छोटे-से बदलाव को भी एक मुसीबत या चुनौती के रूप में देखने लगते हैं। दरअसल, हमारे मस्तिष्क को एक बंधी बंधाई लकीर पर चलने की आदत हो चुकी होती है। ऐसे में एक छोटा-सा बदलाव भी हमें चिड़चिड़ा और बेचैन बना देता है। हम ऐसा सोचने लगते हैं कि यह बदलाव हमारी शांति भंग कर देगा, जबकि हर बार ऐसा नहीं होता। दरअसल, अपने आराम के दायरे से बाहर निकलना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। पर, यह भी सच है कि बिना उससे बाहर निकले यह पता ही नहीं लगाया जा सकता कि आपके लिए वर्तमान से ज्यादा बेहतर और क्या हो सकता है। इसलिए हमेशा खुद को बदलाव के लिए मजबूत दिमाग और आत्म-विश्वास के साथ तैयार रखिए।