सभी प्रकार की सूचनाएं, ख़बरों और अन्य जानकारियों की मानें तो ‘कोरोना वायरस’ की दूसरी लहर अब लगभग खत्म होने को है। पिछ्ले दो वर्षों को ‘संक्रमण काल’ कहना कोई हैरानी की बात नही होगी। पिछले वर्ष से अब तक हुए आर्थिक नुक्सान का आकलन करने पर जो तस्वीर सामने आ रही है, वह भयावह होने के साथ साथ दुःख-दायी भी है। यहाँ-वहां, जहाँ-तहां हर जगह एक ही सवाल है कि ‘ज़िन्दगी’ कब तक सामान्य अथवा पहले जैसी होगी? सबको बेसब्री से इन्तजार है, इस बला के टलने की। क्योंकि लोगों के पास काम नहीं है, कमाई नही है। खर्च भी कितना कम किया जाए। राहत की बात है कि गरीबों को सरकार मुफ्त एवं रियायती दर पर राशन उपलब्ध करवा देती है, पर ‘मध्यम वर्ग’ के हालात तो अब इस कदर उलझ रही है जहाँ पाई-पाई का हिसाब लगाना पड़ रहा है। नौकरियां खत्म हो गयी हैं या अगर हैं भी तो समय पर तनख्वाह नही मिल रही है।

MAZDUR IN LOCKDOWN HR POST -

छोटे-छोटे और मंझले व्यापारियों के हालत भी ठीक नही हैं। महंगाई सुरसा की भांति मुह फैलाए बढती ही जा रही है। जिन परिवार का एक मात्र कमाऊ सदस्य ‘कोरोना’ की भेंट चढ़ गया, उस परिवार के हालात तो और भी ख़राब हैं। उन्हें तो रोटी के साथ-साथ रोज़ी का भी इंतज़ार है। ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकॉनमी (CMIE) की एक रिपोर्ट के अनुसार जब से भारतवर्ष में यह कोरोना-संकट उत्पन्न हुआ, तब से हमारे देश में नौकरीपेशा वालों की गिनती में भारी गिरावट आई है। आलम ये है कि निकट भविष्य में इसमें कुछ सुधार के आसार आसार भी नही दिख रहे हैं। रिपोर्ट की मानें तो कोरोना के ठीक पहले देश में कुल 40.35 करोड़ लोगों के पास रोजगार था परन्तु अब यह गिनती 39 करोड़ के आस पास है। इनमे से करीब 7.3-7.4 करोड़ लोगों के पास पक्की नौकरी हैं। अर्थात इन्हें हर महीने एक बंधी तनख्वाह मिलती है। कोरोना से पहले ऐसे लोगों की गिनती करीब 8.5 करोड़ थी।

समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है।

CMIE ने अपने एक सर्वे में लोगों से पूछा था कि एक साल पहले के मुकाबले उनकी कमाई क्या है? सिर्फ तीन फीसदी लोगों ने कहा कि उनकी आमदनी पहले से बेहतर है। 55 प्रतिशत लोगों ने तो स्पष्ट कहा कि आज उनकी आमदनी एक साल पहले के मुकाबले कम हो गई है और बाकियों का कहना था कि उनकी आमदनी न घटी है ना बढ़ी है। इसका मतलब क्या हुआ? देश के 97 फीसदी लोगों की कमाई एक साल में बढ़ने के बजाय घट गई है। यह खतरनाक एवं दुःख-दायी स्थिति है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल कि इस स्थिति से बाहर कैसे निकला जाए। क्या यह सिर्फ सरकार की जवाबदेही है। नहीं! बल्कि बड़े-बड़े पूंजीपतियों, बुद्धिजीवियों, समाज-सेवकों तथा समाज-सुधारकों का भी कर्तव्य बनता है कि इस स्थिति से शीघ्र बाहर निकलने के लिए त्वरित समाधान का माकूल प्रयास करें।

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