लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के छह लोकसभा सदस्यों में से पांच ने, दल के नेता चिराग पासवान को संसद के निचले सदन लोकसभा में पार्टी के नेता पद से हटाने के लिए लामबंद हो गये है। लोजपा सांसदों ने उनकी जगह उनके ही चाचा पशुपति कुमार पारस को इस पद के लिए चुन लिया है। श्री पारस ने सोमवार को बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की प्रशंसा करते हुए कहा कि वो एक अच्छे नेता तथा बिहार राज्य के विकास पुरुष हैं। इसके साथ ही ये स्पष्ट हो गया है कि पार्टी में एक बड़ी दरार है क्योंकि श्री पारस के भतीजे चिराग पासवान जद (यू) अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नितीश कुमार के धुर विरोधी रहे हैं। वर्तमान लोकसभा में हाजीपुर से सांसद पारस ने कहा, मैंने पार्टी को तोड़ा नहीं, बल्कि बचाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि लोजपा के अधिकांश कार्यकर्ता चिराग पासवान के नेतृत्व में बिहार 2020 विधानसभा चुनाव में जद (यू) के खिलाफ पार्टी के चुनाव लड़ने और बेहद खराब परिणाम से नाखुश हैं।
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पारस ने कहा कि उनका गुट भाजपा समर्थित एनडीए (NDA) सरकार का हिस्सा बना रहेगा। साथ ही श्री पारस ने ये भी कहा कि चिराग पासवान भी संगठन का हिस्सा बने रह सकते हैं। चिराग पासवान के विरुद्ध जाकर हाथ मिलाने वाले पांचों सांसदों के समूह ने पारस को सदन में लोजपा दल के नेता चुनने के अपने फैसले से लोकसभा अध्यक्ष को अवगत करा दिया है। हालांकि पारस ने इस विषय में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है। पारस के प्रेस-वार्ता के बाद चिराग पासवान राष्ट्रीय राजधानी स्थित अपने चाचा के आवास पर उनसे मिलने पहुंचे। आवास पर करीब डेढ़ घंटे तक रुकने के बाद चिराग पासवान वहां से मीडिया से बात किए बिना ही वापस चले गए। ऐसा माना जा रहा है कि दोनों असंतुष्ट सांसदों में से उनसे किसी ने मुलाकात नहीं की। एक घरेलू सहायक ने बताया कि पासवन जब आए तब दोनों सांसद आवास पर मौजूद नहीं थे।
एक रिपोर्ट के अनुसार मिल रही जानकारी से पता चला है कि असंतुष्ट लोजपा सांसदों में प्रिंस राज, चंदन सिंह, वीना देवी और महबूब अली कैसर शामिल हैं, जो चिराग पासवान के काम करने के तरीके से विशेष खुश नही हैं। 2020 में पूर्व लोजपा सुप्रीमो पिता रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा का कार्यभार संभालने वाले चिराग पासवान अब पार्टी में अलग-थलग पड़ते नजर आ रहे हैं। उनके करीबी सूत्रों ने जनता दल (यूनाइटेड) को इस विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि जनता दल (यूनाइटेड) पार्टी काफी समय से लोजपा अध्यक्ष को अलग-थलग करने की कोशिश कर रही थी क्योंकि पार्टी के अन्य सांसदों को ये लग रहा था कि 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ जाने के कारण चिराग के फैसले से सत्ताधारी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा था।