कोरोना महामारी ने उद्योग जगत और बैंकों के साथ आमलोग के समक्ष वित्तीय संकट को और अधिक गंभीर कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक फाइनेंसियल इयर 2020-21 के चौथी तिमाही के परिणामों के आकलन के बाद ये बात सामने आई है कि कोरोना महामारी के दूसरी लहर के कारण ईएमआई (EMI) बाउंस होने के दर में बढ़ोतरी हुयी है जिसके कारण बैंकों का फंसा ऋण यानि एनपीए बढ़ा है। इस रिपोर्ट के अनुसार निजी बैंकों की तुलना में सरकारी बैंकों का एनपीए ज्यादा बढ़ा है। दिलचस्प बात ये है कि लगातार दुसरे महीने भी ऑटो-डेबिट में डिफ़ॉल्ट बढ़ा है। आपको बता दें की ऑटो-डेबिट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा आपके बैंक खाते से ऋण की क़िस्त अथवा क्रेडिट कार्ड और अन्य प्रकार के भुगतान की राशि तय समय-सीमा खुद कट जाती है। डिफ़ॉल्ट रेट में बढ़ोतरी होने से बैंकों एवं उपभोक्ताओं के समक्ष गहरा संकट मंडरा रहा है।
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ईएमआई (EMI) चूक के मामले क्यों बढ़ रहे हैं
एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के कारण बेरोजगारी की समस्या आम हो गयी है, करोड़ों लोगों का रोज़गार चला गया है। कोरोना की पहली लहर के कारण वेतन में कटौती एवं छंटनी से उपभोक्ता-उद्योग अभी संभले भी नही थे कि दूसरी लहर ने अपनी दस्तक दे दी। फलस्वरूप राज्यों को पुनः लॉकडाउन जैसे कठोर निर्णय लेने पड़े, परिणाम ये हुआ है कंपनियों ने दुबारा छंटनी शुरू कर दी जिसके कारन असंख्य लोगों की नौकरी चली गयी। ऐसी स्थिति में अधिकतर लोन की ईएमआई (EMI) देने में असफल रहे हैं। वहीं पर लॉकडाउन की वजह से छोटी-छोटी कम्पनियां भी बंद हो गयी, जिससे वह भी ऋण की क़िस्त राशि चुकाने में असमर्थ हो गयी हैं।