Who was Suraj Narayan Singh : बिहार की पावन धरा पर मधुबनी जिला (Madhubani District) के नरपति नगर गांव (Narpati Nagar Village) में 17 मई 1907 को एक निर्भीक और क्रांतिकारी का जन्म हुआ, ये कोई और नही बल्कि सूरज नारायण सिंह जी ही थे। आपको बता दें कि सूरज बाबू स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने से लेकर किसान और मजदूरों के हित एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जीवन भर समर्पित रहे। उन्होंने एक ऐसे समाज का सपना देखा था, जहां आर्थिक गैर बराबरी एवं उंच-नीच के लिए कोई स्थान ना हो।
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सूरज बाबू का मानना था कि जब तक ग्रामीण जनता की आर्थिक और सामाजिक दशा में सुधार नहीं होगा ,उन्हें विकास का उचित अवसर नहीं मिलेगा। और बिना इसके, भारतवर्ष का सर्वांगीण विकास कभी भी संभव नहीं हो पाएगा। मात्र 14 साल की छोटी उम्र में असहयोग आंदोलन में शामिल होने के कारण जब उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया तो 1921 में वह अपनी शिक्षा पूरी करने बनारस के काशी विद्यापीठ पहुंचे थे।

इसी बीच वह वीर भगत सिंह एवं बटुकेश्वर दत्त को ट्रेनिग देने वाले मुजफ्फरपुर के क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ल के संपर्क में आए। आपको बता दें कि जब 1931 में भगत सिंह को फांसी की सजा दी गयी, इस घटना ने सूरज बाबु (Who was Suraj Narayan Singh) के जीवन दशा-दिशा बदल दी। वह सब कुछ छोड़कर क्रांतिकारी गतिविधियों में लिप्त हो गए।
Who was Suraj Narayan Singh : हजारीबाग जेल से जेपी को कंधे पर लेकर फांद गए थे सूरज बाबू
आजादी के बाद सूरज नारायण सिंह अधिकतम समय किसान और मजदूरों के लिए आंदोलन करते थे। वे हिन्द मजदूर सभा के अध्यक्ष के रूप में मजदूरों के हक के लिए लड़ने लगे थे। सन् 1973 में सूरज नारायण सिंह के नेतृत्व में रांची के उषा मार्टिन कंपनी के मजदूरों ने अपने वाजिब मांगों के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल में पुलिस विभाग के द्वारा किये गये बर्बरता और लाठीचार्ज में वे गंभीर रूप से घायल हो गए और इलाज़ के दौरान वो शहीद हो गये।

एक बार सूरज बाबू हजारीबाग में पंडित राम नंदन मिश्र व जयप्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) को कंधे पर लेकर योगेंद्र शुक्ला, गुलाबी सुनार और शालिग्राम सिंह के सहयोग से जेल से फांदकर निकल गए थे। भ्रष्ट सरकारी तंत्र और पूंजीपतियों ने मिलीभगत कर उनकी हत्या कर दी। उनकी हत्या पर लोकनायक जयप्रकाश जी, सूरज बाबू की लाश लिपट कर रोते हुए कहा मेरा दाहिना हाथ टूट गया। सूरज बाबू की शहादत के बाद से ही सत्ता परिवर्तन की शुरूआत हुई।
वर्तमान में बिहार सरकार और भारत सरकार से यही अपेक्षा है कि शहीद सूरज नारायण सिंह (Shaheed Suraj Narayan Singh) के नाम पर सामाजिक शोध संस्थान की स्थापना की जाए। इससे आने वाली पीढ़ी सूरज बाबू के इतिहास को पढ़कर देश की एकता और अखंडता, समतामूलक समाज की विचारधारा से अवगत हो सकेगी।
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